Guru Purnima & Janmashtami 2025: Significance & Festivities
Guru Purnima & Janmashtami 2025: Significance & Festivities :- Guru Purnima और श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 2025, दोनों ही हिंदू संस्कृति के अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व हैं। 10 जुलाई को मनाई जाने वाली गुरु पूर्णिमा गुरुजनों के प्रति श्रद्धा और आभार व्यक्त करने का दिन है, जबकि जन्माष्टमी भगवान कृष्ण के दिव्य जन्म और उनकी लीलाओं की स्मृति में मनाई जाती है। दोनों पर्व भक्ति, आस्था और सांस्कृतिक परंपराओं का अद्भुत संगम प्रस्तुत करते हैं।
देश के करोड़ों किसानों को बड़ी राहत देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को पीएम किसान सम्मान निधि योजना (PM Kisan Samman Nidhi Yojana) की 20वीं किस्त का पैसा जारी कर दिया। वाराणसी में आयोजित एक विशेष कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री ने इस योजना की अगली किस्त के तहत ₹20,500 करोड़ की राशि देशभर के 9.7 करोड़ पात्र किसानों के खातों में डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) के जरिए भेजी।
Guru Purnima 2025: तारीख, महत्व और शुभकामनाएं संदेश
हर वर्ष आषाढ़ मास की पूर्णिमा को पूरे भारत में बड़े श्रद्धा और उत्साह के साथ गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) मनाई जाती है। यह केवल एक त्योहार ही नहीं, बल्कि अपने जीवन के गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है। गुरु, चाहे वे हमारे आध्यात्मिक पथ-प्रदर्शक हों, शैक्षणिक शिक्षक हों या फिर जीवन के मार्गदर्शक — उनका योगदान हमारे व्यक्तित्व निर्माण, ज्ञान वृद्धि और सही दिशा में आगे बढ़ने में अमूल्य होता है।
गुरु पूर्णिमा 2025 की तारीख और दिन
इस वर्ष गुरु पूर्णिमा 10 जुलाई 2025, गुरुवार को मनाई जाएगी। यह दिन पूरे देश में विभिन्न धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों से सुसज्जित रहेगा।
गुरु का महत्व
हिंदू धर्म में गुरु का स्थान सर्वोच्च माना गया है। शास्त्रों में कहा गया है:
“गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वरः।
गुरु साक्षात् परब्रह्म, तस्मै श्री गुरवे नमः॥”
अर्थात, गुरु ही ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता) हैं, गुरु ही विष्णु (पालनकर्ता) हैं और गुरु ही महेश (संहारकर्ता) हैं। गुरु को साक्षात् परब्रह्म के समान पूजनीय माना गया है, क्योंकि वे अज्ञान के अंधकार से निकालकर ज्ञान का प्रकाश देते हैं।
गुरु का कार्य केवल विद्या देना नहीं होता, बल्कि वे हमें जीवन जीने की कला, कठिन परिस्थितियों में धैर्य रखना और सही-गलत का भेद सिखाते हैं। उनका आशीर्वाद जीवन में स्थिरता, संतुलन और सफलता की कुंजी है।
गुरु पूर्णिमा का इतिहास और पौराणिक मान्यता
गुरु पूर्णिमा को महर्षि वेद व्यास की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। वेद व्यास ने वेदों का संकलन किया और महाभारत की रचना की। इसलिए इस दिन को “व्यासी पूर्णिमा” भी कहा जाता है।
बौद्ध परंपरा में यह दिन विशेष महत्व रखता है, क्योंकि इसी दिन भगवान बुद्ध ने अपने पहले शिष्यों को धर्म का उपदेश दिया था।
जैन धर्म में भी गुरु पूर्णिमा का महत्व है; इसे भगवान महावीर द्वारा अपने प्रथम शिष्य को दीक्षा देने के दिन के रूप में मनाया जाता है।
गुरु पूर्णिमा पर क्या करें
अपने गुरु के चरण स्पर्श करें और आशीर्वाद प्राप्त करें।
उन्हें उपहार स्वरूप कोई प्रेरणादायक पुस्तक, पुष्प या शॉल अर्पित करें।
दिन की शुरुआत गुरु के नाम के स्मरण और मंत्रोच्चार से करें।
यदि संभव हो तो गरीब और जरूरतमंदों को भोजन कराएं या सेवा कार्य करें।
गुरु पूर्णिमा 2025 के शुभकामना संदेश
“गुरु वो दीप हैं जो अज्ञान के अंधकार को मिटाकर जीवन को ज्ञान के प्रकाश से भर देते हैं। गुरु पूर्णिमा की शुभकामनाएं!”
“जीवन के हर मोड़ पर सही राह दिखाने वाले गुरु को नमन। Happy Guru Purnima 2025!”
“गुरु ही वो शक्ति हैं जो असंभव को संभव बना देते हैं। सभी गुरुओं को प्रणाम और गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं।”
गुरुपूर्णिमा 2025 की तारीख और महत्व
इस वर्ष गुरु पूर्णिमा 10 जुलाई 2025 (गुरुवार) को पूरे देश में श्रद्धा और आस्था के साथ मनाई जाएगी। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह दिन आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को आता है। यह अवसर न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से भी अत्यंत पूजनीय माना जाता है।
यह दिन व्यास पूर्णिमा के नाम से भी प्रसिद्ध है, क्योंकि इसी दिन महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था। वेदव्यास ने वेदों का संकलन और विभाजन कर ज्ञान को व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने ही महाभारत जैसे महाकाव्य की रचना की, जो भारतीय संस्कृति और दर्शन का आधार है। उनके इस अतुलनीय योगदान की स्मृति में यह दिन “गुरु पूर्णिमा” के रूप में भी मनाया जाता है।
गुरु-शिष्य परंपरा और महत्व
भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य परंपरा का विशेष स्थान है। गुरु केवल शिक्षा देने वाला नहीं, बल्कि जीवन के हर मोड़ पर मार्गदर्शन करने वाला पथ-प्रदर्शक होता है। प्राचीन काल में गुरुकुल में शिक्षा लेने की परंपरा थी, जहां शिष्य अपने गुरु के सान्निध्य में रहकर ज्ञान, आचार और जीवन मूल्यों को सीखते थे।
गुरु को ईश्वर से भी ऊंचा स्थान देने का भाव संस्कृत के इस श्लोक में झलकता है:
“गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वरः।
गुरु साक्षात् परब्रह्म, तस्मै श्री गुरवे नमः॥”
अर्थात, गुरु सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा, पालनकर्ता विष्णु और संहारकर्ता महेश के समान हैं। वे ही साक्षात् परब्रह्म हैं, जिन्हें हम नमन करते हैं।
गुरु पूर्णिमा पर विशेष परंपराएं
इस दिन विशेष रूप से शिष्यों द्वारा अपने गुरुओं को सम्मान और धन्यवाद देने की परंपरा है।
शैक्षणिक संस्थानों — स्कूल और कॉलेजों में छात्र अपने शिक्षकों को पुष्प, कार्ड और शुभकामना संदेश अर्पित करते हैं।
आश्रमों और मठों — यहां भजन-कीर्तन, सत्संग और प्रवचन का आयोजन होता है।
धार्मिक स्थलों — भक्त अपने आध्यात्मिक गुरु का पूजन कर उनके आशीर्वाद से दिन की शुरुआत करते हैं।
कई लोग इस दिन व्रत रखते हैं और गुरु के नाम से सेवा कार्य करते हैं, जैसे भोजन वितरण या जरूरतमंदों की सहायता।
गुरु पूर्णिमा का सार्वभौमिक संदेश
गुरु पूर्णिमा केवल किसी धर्म या पंथ तक सीमित नहीं है। यह जीवन में सीख, प्रेरणा और सही दिशा देने वाले हर व्यक्ति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है — चाहे वे माता-पिता हों, शिक्षक हों, आध्यात्मिक मार्गदर्शक हों या कोई मित्र जिसने कठिन समय में सही सलाह दी हो।
गुरु का जीवन में स्थान क्यों है महत्वपूर्ण?
गुरु का कार्य केवल शिक्षा देना नहीं होता, बल्कि वह हमें अज्ञानता के अंधकार से निकालकर ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाते हैं।
गुरु हमारे जीवन का वह दीपक होते हैं जो हर कठिन मोड़ पर हमें दिशा दिखाते हैं।
एक सच्चा गुरु न केवल हमें ज्ञान देता है, बल्कि चरित्र, संस्कार और जीवन जीने की सही राह भी दिखाता है।
इसलिए गुरुपूर्णिमा के दिन हम गुरु के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं।
गुरुपूर्णिमा 2025 पर भेजें ये खूबसूरत शुभकामनाएं संदेश (Guru Purnima Wishes in Hindi)
गुरु पूर्णिमा का दिन हमारे जीवन के उन सभी व्यक्तियों के लिए समर्पित है, जिन्होंने हमें सही दिशा दिखाई, ज्ञान का मार्ग प्रशस्त किया और जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। चाहे वह हमारे आध्यात्मिक गुरु हों, स्कूल-कॉलेज के शिक्षक, माता-पिता या जीवन में कठिन समय में सहारा देने वाले मित्र — हर वह व्यक्ति जो हमें आगे बढ़ने की राह दिखाए, गुरु कहलाने योग्य है।
इस खास दिन पर आप भी अपने गुरु या जीवन में मार्गदर्शन करने वाले व्यक्तियों को सुंदर शब्दों में शुभकामनाएं भेज सकते हैं। नीचे कुछ दिल को छू लेने वाले गुरु पूर्णिमा शुभकामना संदेश दिए गए हैं, जो आपके भावों को शब्द देंगे —
गुरु पूर्णिमा के शुभकामना संदेश
“गुरु का आशीर्वाद जीवन से अंधकार को दूर करता है, और ज्ञान का प्रकाश फैलाता है। गुरुपूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं!”
“गुरु वो पारस है जो लोहे को भी सोना बना देता है, ऐसे महान गुरु को कोटि-कोटि प्रणाम। गुरुपूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं!”
“ना उम्र की सीमा हो, ना जन्म का हो बंधन, जहाँ ज्ञान हो वहाँ गुरु का वंदन। गुरुपूर्णिमा की शुभकामनाएं!”
“गुरु हमारे जीवन का दीपक है, जो हर अंधेरे में हमें मार्ग दिखाता है। गुरुपूर्णिमा की हार्दिक बधाई!”
“गुरु बिन ज्ञान नहीं, ज्ञान बिन आत्मा नहीं, ध्यान, संयम, कर्म सब कुछ है गुरु की देन। गुरुपूर्णिमा के पावन अवसर पर कोटि नमन।”
“गुरु ही है वो शक्ति जो हमें गिरने नहीं देती, हर बार उठाकर चलना सिखाती है। गुरुपूर्णिमा की मंगलकामनाएं!”
“गुरु से ही होती है जीवन की शुरुआत, गुरु ही दिखाते हैं सच्ची बात। गुरुपूर्णिमा के पावन दिन पर गुरु चरणों में प्रणाम।”
“गुरु है ब्रह्मा, गुरु है विष्णु, गुरु देव है महेश्वर… गुरु ही हैं साक्षात परमेश्वर। गुरुपूर्णिमा की शुभकामनाएं!”
“जिसने हमें चलना सिखाया, अज्ञानता से ज्ञान की ओर ले आया, ऐसे गुरु को बारंबार प्रणाम। गुरुपूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं!”
🙏 गुरुपूर्णिमा कैसे मनाएं?
गुरु पूर्णिमा केवल पूजा-पाठ या रस्म तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन में सीख और प्रेरणा देने वाले हर व्यक्ति के प्रति सच्चे आभार का दिन है। इस अवसर को आप इन तरीकों से खास बना सकते हैं —
अपने गुरु को आभार व्यक्त करें — चाहे वे दूर हों या पास, उन्हें फोन, मैसेज या वीडियो कॉल के जरिए धन्यवाद दें। अगर संभव हो तो व्यक्तिगत रूप से मिलकर उनका आशीर्वाद लें।
धार्मिक या आध्यात्मिक स्थल जाएं — किसी मंदिर, आश्रम, मठ या गुरुद्वारे जाकर पूजा, भजन-कीर्तन या सत्संग में भाग लें।
शिक्षकों को धन्यवाद दें — विद्यार्थियों के लिए यह अपने स्कूल या कॉलेज के शिक्षकों को सम्मानित करने का श्रेष्ठ अवसर है।
सेवा कार्य करें — किसी गरीब या जरूरतमंद को किताबें, स्टेशनरी, कपड़े या अन्य उपयोगी वस्तुएं दान करें।
ज्ञान बांटें — केवल वस्तुएं ही नहीं, बल्कि समय निकालकर किसी को कुछ नया सिखाएं, जैसे किसी बच्चे को पढ़ाना या किसी बुजुर्ग को तकनीक का उपयोग समझाना।
गुरु पूर्णिमा का सार
गुरु पूर्णिमा का सबसे बड़ा संदेश है — “कृतज्ञता”। हमारे जीवन में जितनी भी सफलताएं, उपलब्धियां और अच्छे मूल्य हैं, उनमें हमारे गुरुओं का सीधा योगदान होता है। इस दिन उन्हें स्मरण करना और उनका आशीर्वाद लेना, हमारे जीवन को और भी सार्थक बनाता है।
गुरु पूर्णिमा का दिन हमारे जीवन के उन सभी व्यक्तियों के लिए समर्पित है, जिन्होंने हमें सही दिशा दिखाई, ज्ञान का मार्ग प्रशस्त किया और जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। चाहे वह हमारे आध्यात्मिक गुरु हों, स्कूल-कॉलेज के शिक्षक, माता-पिता या जीवन में कठिन समय में सहारा देने वाले मित्र — हर वह व्यक्ति जो हमें आगे बढ़ने की राह दिखाए, गुरु कहलाने योग्य है।
इस खास दिन पर आप भी अपने गुरु या जीवन में मार्गदर्शन करने वाले व्यक्तियों को सुंदर शब्दों में शुभकामनाएं भेज सकते हैं। नीचे कुछ दिल को छू लेने वाले गुरु पूर्णिमा शुभकामना संदेश दिए गए हैं, जो आपके भावों को शब्द देंगे —
गुरु पूर्णिमा के शुभकामना संदेश
“गुरु का आशीर्वाद जीवन से अंधकार को दूर करता है, और ज्ञान का प्रकाश फैलाता है। गुरुपूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं!”
“गुरु वो पारस है जो लोहे को भी सोना बना देता है, ऐसे महान गुरु को कोटि-कोटि प्रणाम। गुरुपूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं!”
“ना उम्र की सीमा हो, ना जन्म का हो बंधन, जहाँ ज्ञान हो वहाँ गुरु का वंदन। गुरुपूर्णिमा की शुभकामनाएं!”
“गुरु हमारे जीवन का दीपक है, जो हर अंधेरे में हमें मार्ग दिखाता है। गुरुपूर्णिमा की हार्दिक बधाई!”
“गुरु बिन ज्ञान नहीं, ज्ञान बिन आत्मा नहीं, ध्यान, संयम, कर्म सब कुछ है गुरु की देन। गुरुपूर्णिमा के पावन अवसर पर कोटि नमन।”
“गुरु ही है वो शक्ति जो हमें गिरने नहीं देती, हर बार उठाकर चलना सिखाती है। गुरुपूर्णिमा की मंगलकामनाएं!”
“गुरु से ही होती है जीवन की शुरुआत, गुरु ही दिखाते हैं सच्ची बात। गुरुपूर्णिमा के पावन दिन पर गुरु चरणों में प्रणाम।”
“गुरु है ब्रह्मा, गुरु है विष्णु, गुरु देव है महेश्वर… गुरु ही हैं साक्षात परमेश्वर। गुरुपूर्णिमा की शुभकामनाएं!”
“जिसने हमें चलना सिखाया, अज्ञानता से ज्ञान की ओर ले आया, ऐसे गुरु को बारंबार प्रणाम। गुरुपूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं!”
🙏 गुरुपूर्णिमा कैसे मनाएं?
गुरु पूर्णिमा केवल पूजा-पाठ या रस्म तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन में सीख और प्रेरणा देने वाले हर व्यक्ति के प्रति सच्चे आभार का दिन है। इस अवसर को आप इन तरीकों से खास बना सकते हैं —
अपने गुरु को आभार व्यक्त करें — चाहे वे दूर हों या पास, उन्हें फोन, मैसेज या वीडियो कॉल के जरिए धन्यवाद दें। अगर संभव हो तो व्यक्तिगत रूप से मिलकर उनका आशीर्वाद लें।
धार्मिक या आध्यात्मिक स्थल जाएं — किसी मंदिर, आश्रम, मठ या गुरुद्वारे जाकर पूजा, भजन-कीर्तन या सत्संग में भाग लें।
शिक्षकों को धन्यवाद दें — विद्यार्थियों के लिए यह अपने स्कूल या कॉलेज के शिक्षकों को सम्मानित करने का श्रेष्ठ अवसर है।
सेवा कार्य करें — किसी गरीब या जरूरतमंद को किताबें, स्टेशनरी, कपड़े या अन्य उपयोगी वस्तुएं दान करें।
ज्ञान बांटें — केवल वस्तुएं ही नहीं, बल्कि समय निकालकर किसी को कुछ नया सिखाएं, जैसे किसी बच्चे को पढ़ाना या किसी बुजुर्ग को तकनीक का उपयोग समझाना।
गुरु पूर्णिमा का सार
गुरु पूर्णिमा का सबसे बड़ा संदेश है — “कृतज्ञता”। हमारे जीवन में जितनी भी सफलताएं, उपलब्धियां और अच्छे मूल्य हैं, उनमें हमारे गुरुओं का सीधा योगदान होता है। इस दिन उन्हें स्मरण करना और उनका आशीर्वाद लेना, हमारे जीवन को और भी सार्थक बनाता है।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 2025: कथा, महत्व, उत्सव और परंपराएं
भागवत पुराण के 10वें स्कंध (लगभग 10वीं शताब्दी) में विस्तार से वर्णित कथा के अनुसार, जब संसार में अधर्म, अन्याय और अत्याचार चरम पर था, तब भगवान विष्णु ने पृथ्वी को असुरों के आतंक से मुक्त करने के लिए कृष्ण अवतार लेने का निश्चय किया।
तत्कालीन समय में कई असुर (दैत्यों) ने पृथ्वी पर राजसत्ता हथिया ली थी और वे प्रजा पर अत्याचार कर रहे थे। इनमें से एक सबसे क्रूर और अहंकारी राजा था—कंस, जो यादव वंश का शासक था और मथुरा नगरी (वर्तमान उत्तर प्रदेश) पर शासन करता था।
कंस और देवकी की कथा
कंस की बहन देवकी का विवाह यादव वंश के वीर और धर्मात्मा वसुदेव से हुआ। विवाह के समय आकाशवाणी हुई—
“हे कंस! देवकी का आठवां पुत्र ही तेरे अंत का कारण बनेगा।”
यह सुनकर कंस का क्रोध और भय बढ़ गया। उसने तलवार उठाकर अपनी बहन की हत्या करनी चाही, लेकिन वसुदेव ने शांति और बुद्धिमत्ता से हस्तक्षेप करते हुए वचन दिया कि देवकी से उत्पन्न होने वाले सभी संतानें वह स्वयं कंस को सौंप देंगे।
कंस ने इस शर्त पर उनकी जान तो बख्श दी, लेकिन दोनों को मथुरा के कारागार में कैद कर लिया।
समय बीता, और देवकी के पहले छह पुत्र जन्म लेते ही कंस के हाथों मारे गए। सातवें गर्भ को योगमाया की लीला से वसुदेव की पहली पत्नी रोहिणी के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया गया, जिससे बलराम का जन्म हुआ। बलराम को विष्णु का आंशिक अवतार और शेषनाग का अवतार माना जाता है।
कृष्ण का दिव्य जन्म
देवकी का आठवां गर्भ पूरा हुआ, और भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी की आधी रात को, जब पूरे ब्रजमंडल में अंधकार छाया था, तभी विष्णु स्वयं चार भुजाओं में शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किए प्रकट हुए।
माता-पिता ने उनका दिव्य रूप देखा, लेकिन विष्णु ने उन्हें आदेश दिया कि वे उन्हें यशोदा और नंद के घर गोकुल में पहुंचा दें और वहां जन्मी कन्या को वापस ले आएं।
ईश्वरीय चमत्कार से कारागार के द्वार खुल गए, पहरेदार गहरी नींद में सो गए और यमुना नदी का पानी वसुदेव के पांव तक उतर गया। वसुदेव ने शिशु कृष्ण को टोकरी में रखा और नदी पार कर गोकुल पहुंच गए। वहां यशोदा के पास सो रही नवजात कन्या (योगमाया) को लेकर वे लौट आए।
कंस ने जब उस कन्या को मारने की कोशिश की, तो वह देवी के रूप में प्रकट हुई और चेतावनी देकर आकाश में विलीन हो गई—“अरे मूर्ख! तेरा वध करने वाला तो जन्म ले चुका है और अब कहीं और सुरक्षित है।”
कृष्ण की लीलाएं और कंस वध
गोकुल और वृंदावन में कृष्ण ने बाल्यकाल में अनेक अद्भुत लीलाएं कीं—पूतना वध, शाकटासुर वध, कालिय नाग का दमन, गोवर्धन पर्वत को उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा, और माखन चोरी जैसी चंचल बाल लीलाएं।
युवावस्था में मथुरा लौटकर उन्होंने कंस का वध किया और मथुरा को अत्याचार से मुक्त कराया।
जन्माष्टमी का महत्व
जन्माष्टमी केवल कृष्ण जन्म का उत्सव नहीं है, बल्कि यह धर्म की विजय, अधर्म का अंत, भक्ति और प्रेम की सर्वोच्चता का प्रतीक है।
कृष्ण गीता के उपदेश में कहते हैं—
“जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं अवतार लेता हूँ।”
यही कारण है कि जन्माष्टमी का पर्व भक्तों के लिए केवल एक धार्मिक अवसर नहीं, बल्कि जीवन में सत्य, प्रेम और कर्तव्य निभाने का संकल्प भी है।
उत्सव और परंपराएं
व्रत और उपवास – भक्त इस दिन निर्जला या फलाहार व्रत रखते हैं और रात 12 बजे कृष्ण जन्म के बाद प्रसाद ग्रहण करते हैं।
मंदिर सजावट और झांकियां – मथुरा, वृंदावन और द्वारका के मंदिरों में विशेष सजावट होती है। कृष्ण जन्म की झांकियां सजाई जाती हैं जिनमें मथुरा कारागार, गोकुल, यमुना पार करने और बाल लीलाओं के दृश्य होते हैं।
मध्यरात्रि पूजा – ठीक 12 बजे बालकृष्ण का जल, दूध, घी, शहद और गंगाजल से अभिषेक किया जाता है। उन्हें नए वस्त्र और आभूषण पहनाए जाते हैं।
भजन-कीर्तन और रासलीला – भक्त मंडलियां भक्ति गीत और रासलीला प्रस्तुत करती हैं।
दही हांडी – महाराष्ट्र और गोवा में अगले दिन दही-हांडी फोड़ने की परंपरा है, जो कृष्ण की माखन-चोरी की याद दिलाती है। मानव पिरामिड बनाकर ऊंचाई पर लटकाए मटके को तोड़ा जाता है।
जन्माष्टमी 2025 की तिथि
वर्ष 2025 में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व 15 अगस्त 2025, शुक्रवार को मनाया जाएगा। इस दिन पूरे भारत में मंदिरों, घरों और गलियों में भक्तिमय वातावरण रहेगा, और रातभर “हरे कृष्ण” की ध्वनि गूंजेगी।
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